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सफर - मौत से मौत तक….(ep-5)

नंदू के बाबूजी और गोविंद के बीच लेन देंन की बात चल रही थी। तो नंदू यही सोच रहा था बाबूजी क्यो जबर्दस्ती कर रहे है। ये तो अच्छी बात है कि वो कुछ भी लेने से मना कर रहे है, हमारा ही फायदा है उसमें, खर्चा भी कम आएगा और टेंशन भी कम रहेगी।

नंदू ने धीरे से बाबूजी के कान पर कहा "बाबूजी आप क्यो जिद कर रहे है, जब उनको नही जरूरत तो रहने दीजिए, वैसे भी पढ़ा लिखा लड़का है, सरकारी नौकरी में भी नम्बर आने वाला है।"

"तू नही समझेगा बेटा, मैं जो कर रहा हूँ बिल्कुल सही कर रहा हूँ" बाबूजी ने कहा।

नंदू की हीम्मत नही होती थी ज्यादा बात करने की, एक बार जो बाबूजी ने बोल दिया बस वही होगा फिर…. उनके फैसले में बहस नही चलती थी। हालांकि उनके अपने बच्चों के लिए किये गये फैसले कभी गलत नही होते थे।

अभी उनकी बात में ज्यादा बहस बिना किये चिंतामणि ने उनकी सारी बात मान ली,  और शादी पक्की हो गयी। अब सरला की शादी होने के दिन नजदीक आने लगे तो बाबूजी ने कुछ सामान और एक जोड़े सोने के गहने, और कुछ बर्तन जोड़ने शुरू कर दिए थे।

नंदू भी दिन में रिक्शा चलाता था और शाम को पास के किसी ढाबे में काम करता था। क्योकि बाबूजी से ज्यादा टेंशन उसने ले ली थी बहनों की, दोनो बाब-बेटों ने मिलकर सरला की शादी स्कूल के मास्टर जी बिनोद के साथ कर दी थी। सारा काम खुशी खुशी निपट गया। और विदाई में सब रोने लगे थे। नंदू भी बहुत रोया, और उन सबको रोते देखकर नंदू अंकल भी रोने लगा,

यमराज नंदू अंकल को चुपाते हुए बोला -" क्या ड्रामा करते ही अंकल जी….ये आज की बात नही है,अब तो सरला जी के बच्चों की भी विदाई हो गयी है।"

नंदू को यमराज की बात में दम लगा, उसने यमराज की तरफ देखा और कहा- "बात तो ठीक है, जब सबकुछ हो ही गया तो पता नही क्यो कुछ सीन हंसाते है तो कुछ रुलाते है, जबकि सब मिथ्या है, बित चुका है"

"तभी तो मैं बोल रहा हूँ कि सीधे सीधे बताओ फांसी क्यो लगाई, बात खत्म" यमराज ने कहा।

"ना जी ना….मुझे सब देखना है, पता है इस हिसाब से मैं 120 साल जी लूँगा, साठ जीकर आ गया, और ऐसे चलते चलते साठ साल और हो जाएंगे" नंदू खुश होकर अपने दिमाग की दाद देते हुए बोला।

"मूर्ख बालक…….सॉरी सॉरी मेरा मतलब बेवकूफ अंकलजी….आप इस बीते एक साल को एक साल मान रहे हो….यह एक सेकंड है, मनुष्य के जिंदगी के साठ साल इस जीवन कुछ भी नही है, इस सूक्ष्मलोक में हर साल एक सेकंड के बराबर है, और साठ साल तो एक मिनट जैसा है" यमराज ने कहा
ये सब यमराज उसे बहलाने फुसलाने के लिए बोल रहा था ताकि वो उस राज का पर्दाफाश जल्दी करे जिसकी वजह से उसकी बोरिंग लाइफ का रिव्यू उसे करना पड़ रहा था।

नंदू हंसते हुए बोला "मतलब हमे मिले अभी एक सेकंड भी नही हुआ"

"सेकंड मिनट का हिसाब लगाना छोड़ो, ये बताओ आप किसी एक गलत फैसले का जिक्र कर रहे थे, की नंदू के एक गलत फैसले से बहुत पछताना पड़ा था।" यमराज ने सवाल किया तो अचानक ही नंदू ने गलती से जवाब दे दिया, जिस वजह से अचानक उनकी लाइफ बहुत आगे बढ़ गयी।

"वो तो तुलसी की शादी की बात थी, सरला की शादी में तो बाबूजी भी काम धंधा कर लेते थे, उन्होंने सारी जिम्मेदारियां निभाई थी, लेकिन तुलसी की शादी तय होने तक उनकी तबियत खराब रहने लगी, और घर मे सिर्फ में ही कमाने वाला रह गया।" नंदू अंकल ने कहा।

"लेकिन गलत फैसला क्या था वो तो बताओ" यमराज ने कहा।

अपनी गलती मानते हुए नंदू अंकल ने कहा- "मेरा गलत फैसला ये था कि मैंने बाबूजी की तरह जबरदस्ती नही की……. लड़के वालों ने बस एक बार कहा कि हमे बस लड़की चाहिए, एक गुणवंत लड़की हो, घर तो लड़की से बनता है, लड़की के लिए आये दहेज से नही।, मैं खुश हो गया, मैंने दूसरा लफ्ज कुछ नही कहा"

"तो इसमे गलत क्या हुआ…. ठीक हो गया ना, बिना दहेज दिए ही शादी की बात हो गयी" यमराज ने कहा।

"नही…….ये सही भी नही हुआ……बाबूजी ने बहुत समझाया कि कुछ न कुछ देना पड़ेगा, नही तो कल को हमारी लड़की को परेशान करेंगे, लेकिन मैं नही माना…… मुझे तब रिश्तों की समझ नही थी, मेरे ऊपर जिम्मेदारी जरूर थी, और मैं पारिवारिक जिम्मेदारी को संभालते हुए एक जिम्मेदार लड़का बन चुका था। लेकिन थोड़ी नादानी थी उम्र के हिसाब से" नंदू ने कहा।

"नादानी तो उस उम्र में होती ही है अंकल….आपमे आजतक वो नादानी है…." यमराज बोला।

नंदू अंकल ने अपने कॉलर को छटकते हुए कहा- "क्या करूँ सबको आती नही, हमारी जाती नही"

"लेकिन ये तो हीरोपंती का डायलॉग है, टाइगर की फ़िल्म में उसने ये डायलॉग मारा" यमराज बोला।

"हाँ तो उसको हीरोपंती आती थी ना , मुझे नादानी आती है, इतना बड़ा डिफरेंस है……कब समझेगा मेरी छोटी छोटी बात को, नादानी तो तुझमें भी है बेटा" नंदू अंकल बोला।

"अंकल मैं लास्ट बार समझा रहा हूँ कि मैं आपसे छोटा नही बड़ा हूँ, उम्र में भी और काम मे भी….हर तरह से बड़ा हूँ, फिर ऐसे क्यो बात करते हो" यमराज बोला।

"दिखने में नही है ना….या फिर बुढ्ढों जैसा दिखना शुरू कर दे, अब तेरे जैसा तो मेरा बेटा भी दिखता है, तुझसे बड़ा ही दिखता है" नंदू अंकल ने कहा।

"कहां है आपका बेटा, मुझे उसके पास ले चलो, दिखाओ मुझे…." यमराज ने कहा, क्योकि यमराज जानता था की एक बार ये बेटे के पास ले जाएगा तो वापस यहां नही आ सकता, क्योकि रिव्यू की एक शर्त थी, जिंदगी को लगातार जीने में सब दिखेगा लेकिन छलांग लगाने के बाद वापस नही आ सकेंगे। और अगर वो बेटे के पास ले जाएगा तो फिर सीधे कारण पता लग जायेगा।

उसकी बात सुनकर नंदू बोला- " मैं नादान था….हूँ नही…… मैं बेवकूफ भी था लेकिन अब नही हूँ…. मैंने नियम और शर्ते ध्यान से पढ़ी है बच्चा…. ये रिस्क में नही लूँगा, मैं जानता हूँ वहाँ जाकर लौट नही पाएंगे" नंदू ने कहा।

यमराज ने एक आह भरी और बुदबुदाते हुए बोला - "उफ्फ…. बुढ़ऊ….बहुत चालाक  है"

"कुछ कहा तुमने" नंदू अंकल बोले।

"नही तो….कुछ नही" यमराज बोल पड़ा।

कुछ दिनों में तुलसी की शादी की तैयारी भी शुरू हो गयी, नंदू ने दिन रात मेहनत की, उसे अपनी शादी की उतनी टेंशन नही थी जितनी अपनी बहन की, वो सोच रहा था एक बार इसकी शादी हो जाये बस…. उसके बाद सारी जिम्मेदारियां खत्म…. तुलसी नंदू से छोटी थी, करीब दो साल अभी सोलहवाँ साल लगा ही था तुलसी को,  शादी के जल्दी होने का कारण चिंतामणि की तबियत का खराब रहना भी मुख्य था। चिंतामणि तो चिंता थी कि अगर वो दुनिया को अलविदा कह गया तो उसकी बेटी का कन्यादान कौन करेगा।

नंदू शादी की तैयारी तो कर रहा था, लेकिन इस बार बाबूजी के इलाज में भी खर्च आ रहा था। इसलिए उसने तुलसी के लिए ज्यादा दहेज नही दिया। उसके कुछ जोड़े नए कपड़े, एक बक्शा और एक जोड़ा सोने का झुमका बना दिया था , जबकि इससे कही ज्यादा दिया था सरला को। खैर लड़के वालों की कोई माँग नही थी, और नंदू ने भी जबरदस्ती नही करी थी। और लड़के वाले भी जानपहचान के ही थे, क्योकि रिश्ता सरला के ससुर की जानपहचान के लोगो से हुआ था। गोविंद जी के दोस्त को उनकी बेटी सरला बहुत गुणवान और आदर्शवादी लगी, शान्त और सहज व्यवहार था सरला का…. इसी को मध्यनजर रखते हुए गोविंद के दोस्त ने गोविंद से सवाल किया कि क्या उसकी कोई अविवाहित बहन भी है….अगर है तो मैं अपनी बहू बना लेता हूँ…. वही से बात शुरू हुई और आज शादी भी होने लगी थी।
शादी में दहेज भले ही नही था, लेकिन शादी बहुत धूमधाम से हुई, इस बार मेहमान भी ज्यादा थे, और रिश्तेदार भी….

नंदू अंकल और यमराज भी सरल की शादी की तरह शामिल थे इसमे,
तुलसी के शादी के बाद घर मे नंन्दू, उसके पापा चिंतामणि और माँ कौशल्या रह गए थे। अब नंदू थोड़ा बहुत जो कर्ज शादियों में लिया था वो भी चुकाता रहा और पापा का इलाज भी कराते रहा, साथ ही परिवार का भरण पोषण।
नंदू की जिंदगी बस कमाओ, खाओ, पैसा बचाओ और कर्ज चुकाओ तक सिमट के रह गयी थी,

नंदू हमेशा रिक्शा चलाता रहा, क्योकि जो कमाता वो खाने पीने और माँ बाबूजी की दवाईयों पर खत्म हो जाती थी, बाबूजी थे शुगर और ब्ल्डप्रेशर वाले, दवाइयां चल गयी तो चल गयी, अब मरके ही खत्म होगा सिलसिला….
लेकिन जो भी हो नंदू बहुत खयाल रखता था अपने माँ बाबूजी का…. उनको कोई परेशानी नही आने देता था। शाम को जल्दी घर आकर सबके लिए खाना भी खुद ही बना लेता था। धीरे धीरे सब ठीक होने लगा था, एक बार फिर से गाड़ी पटरी में आने लगी थी।

लेकिन फिर अचानक एक दिन…….

नंदू रिक्शा चलाकर शाम को घर आया तो तुलसी आयी हुई थी। कौशल्या और तुलसी दोनो बैठे हुए थे.……

"अरे तुलसी….तू……. तू कब आयी" नंदू ने पूछा।

तुलसी बिना कुछ बोले नंदू के पैर छूकर अंदर को चली गयी….शायद नंदु से नाराजगी थी….

उसे मुँह लटकाकर अंदर जाते हुए देखा तो नंदू माँ के पास बैठते हुए बोला- "क्या हुआ माँ….क्या बात है….….मेरे सवाल का जवाब भी नही दिया तुलसी ने"

"क्या बताऊ बेटा….वो ससुराल छोड़के आ गयी है….उसके सांस ससुर बहुत परेशान करते थे उसे" कौशल्या ने जवाब दिया।

"लेकिन क्यो?……" नंदू ने सवाल किया।

"रोज बाते सुनाते है उसे….कहते है तेरे माँ बाब ने दिया ही क्या है…. अपने सिर का बोझ हल्का करके हमारे सिर में डाल दिया…" कौशल्या ने कहा।

"लेकिन उन्होंने मना तो किया था….शादी से पहले ही बात हुई थी कि उन्हें कुछ दहेज नही चाहिए" नंदू ने सवाल किया।

तभी अंदर कमरे में सारी बात सुन रही तुलसी ने जबाब दिया- "शादी से पहले सरला दी के ससुराल वालों से भी बात हुई थी कि उन्हें कुछ नही चाहिए, लेकिन उन्हें तो दिया था ना…."

"तू बाहर आकर बात कर….अंदर क्यो छिप गयी….बात तो बता। हुआ क्या था?" नंदू ने कहा।

तुलसी बाहर आई, और मम्मी के पीछे जाकर बैठ गयी, और सिसकते हुए उनके सभी सवालों के जवाब देने लगी

"सरला दी कि सांस ने मेरी सांस उनसे बात की होगी कि हमने तो कुछ नही मांगा, उन्होंने खुद ही ये सब समान दे दिया था….इसलिए मेरे ससुरजी ने भी कुछ मांग नही रखी, उन्हें लगा जितना सरला को दिया है उतना तो देंगे ही…. मुझे तो शादी के दो दिन बाद से ताना देना शुरू कर दिया था, छह महीने तक बर्दाश्त करती रही….आज तो हद ही हो गयी…. बर्दाश्त की भी कोई सीमा होती है" तुलसी ने रोते हुए कहा।

नंदू के पैरों तले जमीन ही खिसक गई
नंदू ने फिर एक सवाल किया- "और रमेश बाबू….वो भी बोलते है क्या……"

"नही….वो कुछ कहते नही लेकिन मम्मी पापा के सामने चुप हो जाते है, पहले पहले मुझे कहते थे कि कोई बात नही माँ बाबूजी को थोड़ा बुरा लगा है, धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा, लेकिन अब उन्होंने भी कह ही दिया कि अगर बड़ी बहन को देने के लिए था तो तुम क्या उनकी दुश्मन थी, एक बक्शे में बात टाल दी"  तुलसी ने सारी प्रॉब्लम बताते हुए कहा।

नंदू अब जाकर समझा कि बाबूजी क्यो जबरदस्ती बेटी का हक कहकर वो सब जरूरी सामान दहेज के रूप में देते थे।  क्यो उन्होंने सरला को वो सब सामान जोड़कर दिया जो उनके अपने घर मे उपलब्ध नही है। खुद के घर मे कपड़े रखने के लिए एक बक्शा नही था, ना कोई अलमारी…… खूंटिया लगी हुई थी जिनमे कपड़े टांक देते थे और उनके सामने एक पर्दा लगा दिया था ताकि ज्यादा बुरा ना दिखे, लेकिन बेटी को अलमारी दी थी। खुद खानां भांडे में पकाते थे, तांबे के पुराने जमाने के बर्तन में ही हमेशा से पका रहे थे, लेकिन बेटी के लिए उस जमाने का नया मॉडर्न कुकर जिसमे सिटी बजती थी और दाल भी जल्दी पक जाती थी वो खरीदा था। नंदू को ये सब तब ठीक नही लगा, वो सोच रहा था बाबूजी उनके मना  करने के बावजूद भी क्यो इतना खर्च कर रहे है।  और तो और तुलसी की शादी में भी अपना इलाज छुड़वाकर उसके लिए सामान जोड़ने की जिद कर रहे थे। मगर नंदू खुद को मॉडर्न ख्यालात वाला एक जिम्मेदार लड़का मानकर उनकी बात टालता रहा। उनको बेहतर इलाज देकर एक बेटे का फर्ज तो निभा लिया, लेकिन अपनी बहन को खुशहाल जीवन नही दे सका।

चिंतामणि चिंता में डूबा था, क्या होगा कैसे होगा….बेटी की जिंदगी बर्बाद होते हुए भला कैसे देख सकता था,
  नंदू बाबूजी के साथ बैठते हुए दुखी स्वर में बोला - " आप टेंशन मत लीजिये बाबूजी, मुझे कुछ वक्त दीजिए,मैं खुद तुलसी को उन सब सामानों के साथ उसके ससुराल तक छोड़कर एक बार और उसकी जिंदगी में खुशियां लाने की कोशीश करूँगा…… मैं आज समझ पाया कि आप कभी गलत नही बोलते हो, आपने सरला को उन पैसो से उन सामान से उसका हक ही नही खुशियां भी दी है, अगर कुछ पैसे खर्च करके में अपनी बहन की खुशियां खरीद सकता हूँ तो मैं जरूर करूँगा"

ये सब दृश्य देखकर तुलसी, कौशल्या उतने भावुक नही हुए थे जितना कि यमराज…. नंदू अंकल तो खुद पर गर्व महसूस कर रहा था और खुश था

"तो तुमने फिर सारा सामान दिया उनको खरीदकर" यमराज ने सवाल किया।

"हाँ….घर तक छोड़कर भी आया…. और उसके बाद कभी कोई शिकायत नही आई, उनके ससुराल वालों की बोलती जो बन्द हो गयी थी" नंदू अंकल ने कहा।

"उसके बाद……आपकी शादी….आपने भी तो दहेज लिया होगा ना……अब सो बहनों को दहेज देकर लोगे नही…. ये तो हो नही सकता" यमराज ने सवाल किया।

"बताऊंगा नही…. चलो मेरे साथ….लड़की देखने" कहते हुए नंदू और अंकल उस घर पहुंच गए जहां नंदू के लिए सुंदर बीवी की तलाश करते हुए नंदू और चिंतामणि पहुंचे थे।

कहानी जारी है


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3 Comments

Khan sss

29-Nov-2021 07:21 PM

Good

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वाह.... बढ़िया...!!नंदू चला बीवी देखने..,🙊🙊

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Miss Lipsa

04-Sep-2021 12:29 PM

Wow....Nice part

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